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Wednesday 13 August 2014

♥ ब्रह्मास्त्र ♥

ब्रह्मास्त्र एक परमाणु हथियार है जिसे
दैवीय हथियार कहा गया है।
माना जाता है कि यह अचूक और सबसे
भयंकर अस्त्र है। जो व्यक्ति इस अस्त्र
को छोड़ता था वह इसे वापस लेने
की क्षमता भी रखता था लेकिन
अश्वत्थामा को वापस लेने
का तरीका नहीं याद था जिसके
परिणामस्वरूप लाखों लोग मारे गए थे।
रामायण और महाभारतकाल में ये अस्त्र
गिने-चुने योद्धाओं के पास था।

रामायणकाल में जहां यह विभीषण और
लक्ष्मण के पास यह अस्त्र
था वहीं महाभारतकाल में यह
द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, कृष्ण,
कुवलाश्व, युधिष्ठिर, कर्ण, प्रद्युम्न और
अर्जुन के पास था। अर्जुन ने इसे द्रोण से
पाया था। द्रोणाचार्य
को इसकी प्राप्ति राम जामदग्नेय से हुई
थी। ऐसा भी कहा गया है कि अर्जुन
को यह अस्त्र इंद्र ने भेंट किया था।

ब्रह्मास्त्र कई प्रकार के होते थे। छोटे-बड़े
और व्यापक रूप से संहारक। इच्छित,
रासायनिक, दिव्य तथा मांत्रिक-अस्त्र
आदि। माना जाता है कि दो ब्रह्मास्त्रों के
आपस में टकराने से प्रलय की स्थिति
उत्पन्न हो जाती है। इससे समस्त पृथ्वी
के समाप्त होने का भय रहता है। महाभारत
में सौप्तिक पर्व के अध्याय 13 से 15 तक
ब्रह्मास्त्र के परिणाम दिए गए हैं।

वेद-पुराणों आदि में वर्णन मिलता है
जगतपिता भगवान ब्रह्मा ने दैत्यों के नाश
हेतु ब्रह्मास्त्र की उत्पति की। ब्रह्मास्त्र
का अर्थ होता है ब्रह्म (ईश्वर) का अस्त्र।
प्राचीनकाल में शस्त्रों से ज्यादा संहारक
होते थे अस्त्र। शस्त्र तो धातुओं से निर्मित
होते थे लेकिन अस्त्र को निर्मित करने
की विद्या अलग ही थी।

प्रारंभ में ब्रह्मास्त्र देवी और देवताओं के
पास ही हुआ करता था। प्रत्येक देवी-
देवताओं के पास उनकी विशेषता अनुसार
अस्त्र होता था। देवताओं ने सबसे पहले
गंधर्वों को इस अस्त्र को प्रदान किया।
बाद में यह इंसानों ने हासिल किया।

प्रत्येक शस्त्र पर भिन्न-भिन्न देव
या देवी का अधिकार होता है और मंत्र,
तंत्र और यंत्र के द्वारा उसका संचालन
होता है। ब्रह्मास्त्र अचूक अस्त्र है,
जो शत्रु का नाश करके ही छोड़ता है।
इसका प्रतिकार दूसरे ब्रह्मास्त्र से
ही हो सकता है, अन्यथा नहीं।

महर्षि वेदव्यास लिखते हैं
कि जहां ब्रह्मास्त्र छोड़ा जाता है
वहां 12 वर्षों तक पर्जन्य वृष्टि (जीव-जंतु,
पेड़-पौधे आदि की उत्पत्ति)
नहीं हो पाती।' महाभारत में उल्लेख
मिलता है कि ब्रह्मास्त्र के कारण गांव में
रहने वाली स्त्रियों के गर्भ मारे गए।

गौरतलब है कि हिरोशिमा में रेडिएशन
फॉल आउट होने के कारण गर्भ मारे गए थे
और उस इलाके में 12 वर्ष तक अकाल रहा।

सिन्धु घाटी सभ्यता (मोहन जोदड़ो,
हड़प्पा आदि) में हुए अनुसंधान से ऐसे कई नगर
मिले हैं, जो लगभग 5000 से 7000 ईसापूर्व
अस्तित्व में थे। इन नगरों में मिले
नरकंकालों की स्थिति से ज्ञात होता है
कि मानो इन्हें किसी अकस्मात प्रहार से
मारा गया है। इसके भी सबूत मिले हैं
कि यहां किसी काल में भयंकर
ऊष्मा उत्पन्न हुई थी। इन
नरकंकालों का अध्ययन करन से
पता चला कि इन पर रेशिएशन का असर
भी था।

* दूसरी ओर शोधकर्ताओं के अनुसार
राजस्थान में से पश्चिम दिशा में
लगभग 10 मील की दूरी पर तीन वर्गमील
का एक ऐसा क्षेत्र है, जहां पर रेडियो एक्टिविटी
की राख की मोटी परत जमी है। इस परत को
देखकर उसके पास एक प्राचीन नगर को खोद
निकाला गया जिसके समस्त भवन और
लगभग 5 लाख निवासी आज से लगभग
8,000 से 12,000 साल पूर्व
किसी विस्फोट के कारण नष्ट हो गए थे।

मुंबई  से उत्तर दिशा में लगभग 400
किमी दूरी पर स्थित लगभग 2154 मीटर
की परिधि वाला एक विशालकाय
गड्ढा मिला है। शोधकर्ताओं के अनुसार
इसकी आयु लगभग 50,000 वर्ष है। इस गड्ढे के
शोध के पता चलता है कि प्राचीनकाल में
भारत में परमाणु युद्ध हुआ था।

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